কবিতা ২

কোথায় যাচ্ছ জগদীশ? 
গোধূলি কিনতে আজকাল আমিও 
শহর ছেড়ে বাইরে যাই
তুমি কী বলে দিতে পারো আমায়
লালরঙা ঘুড়ির জন্য
কোথায় আকাশ পাওয়া যায়?
ভালবেসে শুভেচ্ছা জানাব
এমন সকাল কী আছে? 

আর সেই রাত, যে রাতে জ্যোৎস্না গলে পড়ে
প্রেমের নাগাল পেলে! 
সেই আশ্চর্য স্বপন কী আজো আছে
সকাল হলেই মিলে যায়
রুপোলী থালায়
সোনার ভাত সোনার চামচে! 

আচ্ছা, সোনামুখি সুঁই
আজো কী মেলে নকশী কাঁথার মাঠে? 
আমাকে একটু বলে যাও না
অন্ধ সেই প্রেমিকটা
আজো কী বসে আছে
তার প্রেমিকা আসবে বলে?

Poem-2


Where are you heading Jagadish?

To acquire twilight, I also

Move outside of the town

Can you tell me,

For a crimson kite,

Where should I get the blue?

Is there such dawn to whisper

The words of love?

 

And that night, where moonlight melts

As it reaches the brink of love!

Is there exists such dream

That perishes away in the silvery dawn-

Golden grain on golden plate!

 

Lo! Is there the finest needle

Found in the adorned quilt?

I urge! Please tell me-

That blind lover

Is there still waiting

For his lover to approach? 



कहाँ जा रहे हो जगदीश ?
मैं भी चला शहर छोड़ -
 धुंधली सी सांझ खरिदने के लिए।
तुम सायद बंता भी पायों --
गुलाबी पतंग आसमान में कहा 
उड़ती हुई नज़र आएं।
हे ऐसी कोई सुबह जहां प्यार भरी 
खुशियां बाट पाएं।


ऐसी कोई रात, जहां किरणें पिघल कर मोम बन जाए !
ऐसी कोई मिठी सपना जो सुबह
होती हि सुरज में समा जाए।
हर आंख रोशन हो दुधेल चमकती 
चांदी सी --
हो सोने की प्लेट पर सुनहरा दाना।


कहा है बो बेहतरीन सुई  जिसने पिरोया टुटी हुई तारे, 
खोया हुआ अरमानों की बो सारे 
तसबिरे ?
कोई मुझे बताओ- क्या उस अंधे प्रेमी को अब भी है इंतजार --
इज़हार करने को आतुर  

 

अपने बेपनाह प्यार  !!

 

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